बहुत से लोग कहते है कि मैंने इसे देखा ही नहीं मैं इसे क्यों मानू। वही कुछ लोग कहते है कि भगवान के बिना कुछ नहीं। इतने सारे मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और चर्च। एक बात और दुनिया के बहुत से गलत काम इनकी आड़ में होते है और दूसरे जो लोग इनको मानने का दावा करते है वहीं लोग इनसे विश्वास उठाते हैं।
एक व्यक्ति जो सुबह इनको प्रसाद का चढ़ावा कर रहा था थोड़ी देर बाद वही व्यक्ति मुर्गे को काट कर बनाने के बाद दोनों हाथों से खाने में लगा था और अगले दिन सुबह इस पर ज्ञान बांट रहा की धर्म को तुम लोगों ने बर्बादी कर दिया। इसलिए किसी ऐसे व्यक्ति से सुनकर ईश्वर मैं विश्वास न करें। लेकिन मेरा मानना है कि व्यक्ति को कभी भी नास्तिक नही होना चाहिए क्योंकि जहां आस नहीं होती वहाँ व्यक्ति किसी भी काम को लेकर हमेशा सस्पेंस में रहता है कि ये होगा या नहीं। भगवान में आस्था होनी चाहिए इसलिए नहीं कि कोई प्रवचन दे रहा है क्योंकि जब हम गणित के सवाल का हल निकालते है तो उसका मान 100 या X लेते हैं और हमारा हल निकल जाता है। कई लोग कहेंगे कि में उस मंदिर या मस्जिद में गया और ठीक हो गया ये बात बिल्कुल सही हैं कि ऐसा होता हैं लेकिन वो सिर्फ उन्हीं लोगों के साथ होता हैं जो उसको हद तक मानते है कि में वहां जाऊँगा और ठीक हो जाऊँगा और वो ठीक हो जाता है क्योंकि सारा खेल हमारे दिमाग का है जैसा हम सोचते है वैसा ही हमारे साथ होता है ये भी एक आस्था है कि हम वहाँ जाकर ठीक हो जाएंगे लेकिन वही पर एक नास्तिक को लेकर जाएंगे तो वह ठीक नहीं होगा क्योंकि उसके दिमाग में एक ही बात हैं कि ऐसा हो ही नहीं सकता और वो ठीक नहीं होता। आपने सुना होगा कि अगर किसी मंदिर की नंगे पैर मंदिर में दर्शन करने जाते है तो आपकी बीमारी ठीक हो जाती है वो इसलिए होता है क्योंकि जब आप चलते है तो आपके पैरों से एक्यूप्रेशर के कारण व लम्बी दूरी तय करने से आपका पूरे शरीर में हरकत होती है और ठीक हो जाता है लेकिन जो लोग वी0आई0पी0 दर्शन लेते हैं उनके साथ ऐसा नहीं होता और वो दर्शन करके भी ठीक नहीं होता क्योंकि वह व्यक्ति उन लोगों की परेशानी नहीं देख पाता जो उनसे भी बड़ी है और उन चुनौतियों का सामना नहीं कर पाता जिससे कि उसके साथ हलचल हो। आस्था के बहाने मेडीटेशन भी होता है और जिन लोगों की परेशानियों हमसे ज्यादा होती है जो हमारी परेशानी को कम करती हैं।भगवान में आस्था के बहाने से हम अपने आप को समय दे पाते है।
जब भी हम कोई काम करते है तो भगवान के नाम से शुरू करते है क्योंकि हमें आस है कि में सफल हो ही जाऊँगा। जब कोई व्यक्ति व्रत या रोजा रखता है तो उस दिन किसी ऐसे व्यक्ति या जानवर को कुछ उसे खिलाता हैं जिससे कि उसे भी आस है कि कोई आएगा और उसे कुछ खिलायेगा। अगर किसी ने कभी दान नहीं किया तो वह व्यक्ति बहुत स्वार्थी हैं जो नास्तिक का ही एक प्रारूप हैं। जो लोग नास्तिक होते है उनके अंदर एक हड़बडाहट सी रहती है क्योंकि उनको किसी की आस तो होती नहीं। कई बार हम मुश्किल में फंसे होते है और कोई व्यक्ति आकर हमें बचा लेता है फिर हम कहते है कि आप मेरे लिए भगवान का रूप बनकर आये। इसलिए जो सुप्रीम पावर है वह तो कण कण में है। इसलिए भगवान को ढूंढने की कोशिश ना करें। आस्था रखो लेकिन भगवान के चक्कर में उन पाखंडी लोगों के चक्रव्यूह में मत फँसो जो भगवान के दर्शन करवाने या आपके कष्ट मिटाने की बात करते है अगर आप ठीक हुए या सफल हुए तो वह सिर्फ आपकी आस्था की वजह से हुआ। जब हम कोई डोरा या ताबीज बाँधते है तो हमारा दिमाग ही हमें मैसेज देता है कि कुछ नहीं होगा अब भगवान हमारे साथ है और कुछ नहीं होता इसलिए विश्वास रखों की कोई सुप्रीम पॉवर है जो हमारी रक्षा कर रही है।
हमारा मकसद किसी को आहत पहुँचना नहीं बल्कि उसका तर्क देना है।
मैं लेखक आर. एस. भाम्भू अपने लेखन कार्य के बल पर समाज में एक अच्छा बदलाव लाने का प्रयत्न कर रहा हूँ जिससे हर व्यक्ति के पास पैसा, शोहरत और खुशी हो इसके लिए लगातार कार्य जारी है।
आप आर्टिकल को शेयर करके सहयोग कर सकते हैं 🙏🏻